Two traeasure lock keys of geeta .....गीता के दो अनमोल रत्न....

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।। ।।18.65।।तू मेरा भक्त हो जा? मेरेमें मनवाला हो जा? मेरा पूजन करनेवाला हो जा और मेरेको नमस्कार कर। ऐसा करनेसे तू मेरेको ही प्राप्त हो जायगा -- यह मैं तेरे सामने सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है... सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।। संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तु केवल एक मुझ सर्व शक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा.. मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा, तु शोक मत कर.... भक्ति वेदांत श्री प्रभुपाद जी कहते हैं , "These are the two treasure locks of Shrimad Bhagwadgita." अर्थात ये श्लोक जिसने अपने हृदय में बसा लिया उसका कल्याण निश्चित है..... प्रभुपाद जी कहते हैं... -"krishna says that you surrender unto me. Give up all your business. I will give you relief from all sinful reaction immediately. So, it requires one minute... "My dear kris...