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Two traeasure lock keys of geeta .....गीता के दो अनमोल रत्न....

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  मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।। ।।18.65।।तू मेरा भक्त हो जा? मेरेमें मनवाला हो जा? मेरा पूजन करनेवाला हो जा और मेरेको नमस्कार कर। ऐसा करनेसे तू मेरेको ही प्राप्त हो जायगा -- यह मैं तेरे सामने सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है...  सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।। संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तु केवल एक मुझ सर्व शक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा.. मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा, तु शोक मत कर....  भक्ति वेदांत श्री प्रभुपाद जी कहते हैं , "These are the two treasure locks of Shrimad Bhagwadgita." अर्थात ये श्लोक जिसने अपने हृदय में बसा लिया उसका कल्याण निश्चित है.....  प्रभुपाद जी कहते हैं... -"krishna says that you surrender unto me. Give up all your business. I will give you relief from all sinful reaction immediately. So, it requires one minute...  "My dear kris...

कादम्बरी की कथा

                    कादम्बरी की कथा कादंबरी की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है। विदिशा नगरी के राजा थे शुद्रक,जो अत्यंत प्रतापी और कलाविद् थे ।एक दिन प्रातः वे अपनी राज्यसभा में बैठे थे तभी प्रतिहारी ने आदेश प्राप्त कर एक चांडाल कन्या को सभा में प्रवेश कराया । चांडाल कन्या के हाथ में सोने का पिंजरा था ,जिसमें वैशंपायन नाम का शुक था। शुक़ ने अपना दाहिना चरण उठाकर श्लोक द्वारा राजा का अभिवादन किया। शुक द्वारा राजा शूद्रक के समक्ष कथा का आरंभ - इस शुक के विषय में राजा को महान कौतूहल हुआ और चांडाल कन्या तथा शुक के भोजन एवं विश्राम कर लेने  को कहा। शुक ने अपनी कथा सुनाई और बताया कि वह विंध्याटवी में अपने वृद्ध पिता के साथ रहता था ,एक बहेलिए ने अन्य शुकों के साथ उसके पिता का वध कर दिया और नीचे फेक दिया।पिता के पंखों के भीतर छिपकर वह भी नीचे गिरा, किन्तु बच गया। अपने प्राण बचाने  के लिए वह झाड़ियों में छिप गया और बहालिए के जाने के बाद उस मार्ग से जाने वाले ऋषिकुमार हारित उसे दयावश अपने साथ ले कर महर्षि जबिल के आश्रम आये। जाबिल ने अपने शिष्...

गीता की योग संबंधी विचारधारा

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                         गीता की योग संबंधी विचारधारा वास्तविक अर्थों में श्रीमद्भगवद्गीता को योग शास्त्र की संज्ञा दी गई है। इसके प्रत्येक अध्याय की ‘पुष्पिका’ में ब्रह्मविद्यां योगशास्त्रे ऐसा कहा गया है। अतः गीता का योग संबंधी विचार बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  योग शब्द सामान्यतः संबंध वाचक है। अर्थात् आत्मा और परमात्मा के समन्वित संबंध का सिद्धांत ही योग कहलाता है। इस संबंध को स्थापित करने के तीन साधन बताए गए हैं। जिन्हें कर्म, भक्ति, ज्ञान के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इन तीनों का पृथक पृथक वर्णन तो अनेक शास्त्रों में प्राप्त होता है, परंत इन तीनों के समन्वय का गौरव एकमात्र गीता को ही प्राप्त है।                           गीता में कर्मयोग कर्मयोग वह योग है जिसमें कर्म की ही प्रधानता होती है। इसके मुख्य पक्षपाती लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी है। ज्ञातव्य है कि सकाम और निष्काम के भेद से कर्म दो प्रकार के होते हैं।― सकामकर्म:–   सकामकर्...

श्रीमद्भगवद्गीता

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                            श्रीमद्भगवद्गीता वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता गीता महात्मय वाणी द्वारा वर्णन करने के लिए किसी का भी सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि यह एक परम रहस्यमय ग्रंथ है। इसमें संपूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया है। इसकी संस्कृत इतनी सुंदर और सरल है, कि थोड़ा अभ्यास करने से मनुष्य उसको सहज ही समझ सकता है, परंतु इसका आशय इतना गंभीर है, कि आजीवन निरंतर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं आता। प्रतिदिन नए नए भाव उत्पन्न होते रहते हैं, इससे यह सदैव नवीन बना रहता है। श्रद्धाभाव एवं एकाग्रचित होकर श्रद्धा भक्ति सहित विचार करने से इसके पद-पद में रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष प्रतीत होता है।  श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का प्रधान  स्तंभ है, जो महाभारत रूपी समुद्रमंथन से उत्पन्न हुआ अमृत के समान है। गीता का महात्म्य प्रतिपादित करते हुए भगवान– श्री कृष्ण स्वयमेव अर्जुन से कहते हैं― “गीता में हृदयम्” (गीता मेरा हृदय है।)    इसी गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मज्ञान विषयक, औपनिषदिक ज्ञानकांड क...

पुराण

                          पुराण का अर्थ पुराण का वास्तविक अर्थ :- प्राचीन या पुराना है। इसमें प्राचीन कथानक, वंशावली, इतिहास, भूगोल, ज्ञान - विज्ञान आदि सभी प्राचीन तत्वों का समावेश है, अतः इसे  पुराण नाम दिया गया ।                       पुराणोंं का महत्व   धार्मिक महत्व  :- पुराणो का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। ये सनातन - धर्म के प्राणभूत है सनातन - धर्म इनको वेदों के तुल्य मानता है। ऐतिहासिक महत्व  :-  राजा परीक्षित से लेकर पदमनंद तक का अज्ञात इतिहास पुराणो से ही मिलता है। मौर्य वंशावली के लिए विष्णु - पुराण, आंध्र - वंशावली के लिए मत्स्य - पुराण और गुप्त - वंशावली के लिए वायु पुराण अत्यंत प्रामाणिक सिद्ध हैं। भौगोलिक महत्व  :- पुराणों में चतुर्द्विपा वसुमती सप्तद्विपा वसुमती 18 द्वीप 14 भुवन क्षीरसागर आदि के महत्व का तथा समुद्रों, नदियों, पर्वतो के स्थान का यत्र - तत्र वर्णन है। सामाजिक  महत्व  :-पुराणो में  वर्णाश्रम के गु...

महाभारत का सांस्कृतिक महत्व cultural importance of Mahabharata

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  मित्रों हम आज जिस विकट परिस्थितियों से गुजर रहें हैं उनको देखते हुए मुझे ऐसा लगता है कि हमें अपने प्राचीन ज्ञान को लेकर आगे बढ़ना चाहिए तभी मनुष्य तथा अन्य जातियों का उत्थान संभव है । आज जहाँ पूरा विश्व संस्कृत भाषा पर बड़ी ही तत्परता के साथ शोध में लगा हुआ है, वही हम इस भाषा के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं मित्रों मुझे ऐसा लगता है कि हम अपने जीवन के साथ जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान इस भाषा से प्राप्त कर सकते हैं। इसी विषय पर चिंतन करते हुए मैने यह ब्लॉग बनाया है। इसे पढ़ें तथा अपने अन्य मित्रों  को भी प्रेषित करें, जिससे मेरा यह छोटा सा प्रयास इस भाषा के प्रति सफल हों । Friends, in view of the terrible conditions we are going through today, it seems to me that we should move forward with our ancient knowledge, only then the upliftment of human beings and other castes is possible.  Today, where the whole world is engaged in research with great readiness on Sanskrit language, we are becoming indifferent to this language, Friends, I feel that we can get solution of all the pr...

महाभारत

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                                                   महाभारत Mahabharat परिचय :-भारतीय लौकिक साहित्य में रामायण के पश्चात् महाभारत का ही स्थान है।यह भारतीय साहित्य का तथा विश्व का सबसे विशाल ग्रंथ है। जिसमे तत्कालीन सभी सांस्कृतिक , साहित्यिक आदि विषयों का समन्वय है। यह एक ओर सुललित पद्यात्मक बंध है तो दूसरी ओर आचारसंहिता है । इस महत्वकांक्षा की पूर्ति के कारण यह ‘ भारत ’ से ‘ महाभारत ’ हो गया। महाभारत में स्वयं इस तथ्य का उल्लेख है । “ धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ ।  यदि हास्ति  तदन्यत्र, यंनेहास्ति न तत् क्वचित् ।। ” महाभारत के प्रमुख रचयिता व्यास  ( वेदव्यास या कृष्ण द्वैपायन ) हैं। महाभारत की संक्षिप्त कथा :- 18 पर्वों में संक्षेप में मुख्य कथानक यह है । :- (1) आदिपर्व   - चन्द्रवंश का इतिहास और कौरव – पांडवों की उत्पत्ति (2) सभापर्व – द्यूतक्रीड़ा  (3) वनपर्व - पांडवों का वनवास (4) विराटपर्व – पांडवों का अज्ञातवास (5) ...

संस्कृत साहित्य का इतिहास

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संस्कृत साहित्य का इतिहास रामायण – आदि कवि वाल्मीकि की कृति वाल्मीकीय रामायण प्रथम आदि-काव्य हुआ ।। रामायण में सात कांड है- बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, युद्ध कांड, उत्तर कांड।। ।। इसमें लगभग 24 सहस्त्र श्लोक हैं अतः इसे “चतुर्विशति साहस्त्री संहिता” भी कहते हैं । यह मुख्यतः अनुष्टुप श्लोक में है।।                 ।। करुण रस अंगी है।। * रामायण की शैली  * वाल्मीकि की शैली को वैदर्भी शैली कह सकते हैं। इसमें भाव-भाषा का समन्वय, सरलता,सुबोधता आदि सभी गुण सन्निहित है । इसमें शैली के तीनों गुण प्रसाद, आज और माधुर्य है। भाषा  :- रामायण की भाषा सुंदर सरल ललित और सुबोध है। वाल्मीकि का भाषा पर असाधारण अधिकार है । वे प्रसन्न एवं भाव के अनुरूप शब्दावली का चयन करते हैं। प्राचीन होने पर भी कालिदास आदि की भाषा के तुल्य प्रौढ़ता एवं परिष्कार परिलक्षित होता है यथा सुमुखी नायिका वत शरद कालीन रात्रि की शोभा का वर्णन । रस  :- रामायण में प्रायः सभी रस प्राप्त होते हैं। करुण श्रृंगार और वीर इनमें मुख्य है। करुण रस अंगी है अन्...