श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता गीता महात्मय वाणी द्वारा वर्णन करने के लिए किसी का भी सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि यह एक परम रहस्यमय ग्रंथ है। इसमें संपूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया है। इसकी संस्कृत इतनी सुंदर और सरल है, कि थोड़ा अभ्यास करने से मनुष्य उसको सहज ही समझ सकता है, परंतु इसका आशय इतना गंभीर है, कि आजीवन निरंतर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं आता। प्रतिदिन नए नए भाव उत्पन्न होते रहते हैं, इससे यह सदैव नवीन बना रहता है। श्रद्धाभाव एवं एकाग्रचित होकर श्रद्धा भक्ति सहित विचार करने से इसके पद-पद में रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष प्रतीत होता है। श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का प्रधान स्तंभ है, जो महाभारत रूपी समुद्रमंथन से उत्पन्न हुआ अमृत के समान है। गीता का महात्म्य प्रतिपादित करते हुए भगवान– श्री कृष्ण स्वयमेव अर्जुन से कहते हैं― “गीता में हृदयम्” (गीता मेरा हृदय है।) इसी गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मज्ञान विषयक, औपनिषदिक ज्ञानकांड क...